राम बसे हैं अंतर्मन में किन्तु राम की ही तलाश है
धड़कन में धुन राम नाम ही
रोम रोम में राम राम ही
राम राम हैं साँस साँस में
और हृदय में राम धाम ही
कौन बताये कण कण तृण तृण बसी हुई है चिर सुगन्ध जो
मृग बौराया जिसे ढूँढता उसी राम की यह सुवास है
प्रेम-बेर के सरस भोग में
विग्रह व्रत के उपवासों में
राम अवध के स्वर्ण महल में
राम कठिनतम वनवासों में
जैसे कोई जलचर जल में रहकर जल का पता पूछता
वैसे ही मन पूछ रहा है कहाँ रामजी का निवास है
सजग जन्म में सुप्त जरा में
जल में नभ में वसुंधरा में
शिशु तुलसी के प्रथम शब्द में
बाल्मीकि के मरा मरा में
राम वहाँ हैं आदि जहाँ है, और वहाँ भी जहाँ अंत है
मृत्युलोक से मुक्तिधाम तक राम राम का ही प्रकाश है
आशा और निराशा में भी
प्राप्ति, मुक्ति अभिलाषा में भी
जहाँ नाद है राम वहाँ भी
राम मौन की भाषा में भी
कारक और निवारक भी हैं, स्रष्टा भी संहारक भी
जहाँ तृप्ति है वहाँ राम हैं, राम वहाँ भी जहाँ प्यास है
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