Tuesday 22 August 2017

डॉ. ज्ञानेंद्र गौरव एक सामर्थ्यवान रचनाकार हैं। वर्तमान फिल्मी गीतों को सुनकर फिल्मी गीत विधा के रचनाकारों के प्रति जो छवि बनती है उससे हटकर डॉ ज्ञानेंद्र गौरव के गीतों में भरपूर गहराई और वजन है।
     आदर्शों, नैतिकता के पतन से धूल धूसरित होता समाज क्षरित होती मानवता से द्रवित रचनाकार ने लेखनी चलायी तो लोक की पीड़ा भी रचना में उभरी और पीड़ा के इन शब्दों की परछाई में पीड़ा का कारक भी खड़ा मिला साथ-साथ पीड़ा के निराकरण की राह न दिखने की उलझन भी।
   
           लोकतंत्र की रेल, के माध्यम से देश की दुर्दशा के ज़िम्मेदार इंजन (नेता), इसपर सवार ढीठ स्वार्थी समूहों (जातीय संगठन आदि), भ्रष्टाचारी, लापरवाह नियंत्रक (कर्मचारी, अधिकारी), व्यवस्थाहीन डिब्बे (सरकारी विभाग) और ऊँघते यात्री(सोयी हुई जनता) सभी को रचनाकार ने खरी खरी सुनाई है।
   अधिक भोलापन भी अच्छा नहीं होता हमेशा अंजान बने रहकर काम नहीं चलता ज़िम्मेदार नागरिक हैं तो जागना होगा अन्यथा कवि के व्यंग्यबाण का आपकी ओर चलना तय है।
    डॉ ज्ञानेंद्र गौरव अपनी बात कहने में पूर्णतया सफल हुए हैं।
            गंगा की पीड़ा यह नहीं है कि गंगा ने जो दिया उसके बदले में गंगा को कुछ नहीं मिला बल्कि पीड़ा यह है कि कृतघ्न मानव ने गंगा को ऐसा बना दिया कि गंगा देने लायक भी न बची।
           गंगा उल्लास भी देती है, गंगा प्यास भी बुझाती है, गंगा रोज़गार भी देती है, गंगा अपने तट पर ठिकाना भी देती है और गंगा तब भी अपनाती है जब हम सब को व्यर्थ और बोझ समझ मे आने लगते हैं किंतु गंगा को हमारी महत्वाकांक्षा ने मृतप्राय कर दिया।
    हमे हर घर मे सबमर्सिबल पम्प चाहिए, हमें चौबीस घंटे बिजली चाहिए, हमें गंगा किनारे एक्सप्रेस वे भी चाहिए, हमें गंगा किनारे बहुमंज़िला इमारत से गंगा का नज़ारा भी चाहिए, हमें पॉलीथिन और कीटनाशक भी चाहिए, हमें वो फैक्ट्रियां भी चाहियें जो ज़हर देकर गंगा को मार सकें...... क्योंकि हमें गंगा नहीं सुविधाएं चाहियें।
   गंभीरता से अपनी प्राथमिकताएं फिर से तय करने को इंगित करती ज़बरदस्त रचना है।
   सफेदपोशों की दिखावटी गंगा आरती गंगा का भला नहीं करेगी क्योंकि ये वही खद्दरधारी हैं जिनकी फैक्ट्रियां ज़हर बहा रही हैं।
   गंगा ने सबका उद्धार किया है अब समय है कि हम गंगा का क़र्ज़ चुकाएँ। डॉ ज्ञानेंद्र गौरव की यह रचना गंगा संरक्षण हेतु प्रेरित करती है।
     
       
   

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