प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून' का साहित्य को समर्पित ब्लॉग
लपरहा
मफ़लर टोपी स्वेटर जैकेट कुछ भी मेरे पास नहीं है घोर घना छाया है कोहरा दिखता कहीं उजास नहीं है इस मदमाते यौवन में कोई तो जादू है गोरी इस सर्दी में भी महफ़िल में सर्दी का अहसास नहीं है
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