Tuesday 22 August 2017

व्यंग्य

यू पी के विधानसभा चुनाव में कई धुरंधर (?) पार्टियों की करारी हार देखकर मेरे मन में बहुत पीड़ा हुई। विजेता पार्टी को चौबीस घंटे पानी पी पी कर बधाई देने के बाद थोड़ी फुर्सत मिली तो मैं बड़ा बेमन होकर मंथन करने लगा कि आख़िर इतनी बड़ी हार हुई तो कैसे?
अब गंभीर मंथन करने के लिए शांति और एकांत चाहिए था होली के साथ साथ दीवाली मना रहे जिताड़े मुझे गंभीर नही होने दे रहे थे। ख़ैर....
मंथन तो करना था ही। कॉफी देर मगज़ खपाने के बाद जब मेरी समझ में कुछ नहीं आया तो मुझे ज्योतिषाचार्य मतगिरी जी महाराज की याद आयी। मैं दौड़ा दौड़ा आचार्य जी के पास पहुंचा और सवालों की झड़ी लगा दी। मेरे सवालों को सुनकर पहले तो उन्होंने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं बहन जी हूँ और वो इलेक्शन कमीशन जिससे मैं ई वी एम के खोट गिना रहा हूँ।

मंगल दोष
जंगल दोष
जन रोष
लोकतंत्र
सेवा मन्त्र
दान
खान-दान
ना-दान

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