प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून' का साहित्य को समर्पित ब्लॉग
जग की बातें जग जाने पर मैं तो अपनी ही कहता हूँ गीतों में बस वो लिख पाता जो पीड़ा मैं ख़ुद सहता हूँ
लेकिन एक और सच ये हैं मैं जग की पीड़ा जीता हूँ गीतों में सब कह पाने को शंकर जैसे विष पीता हूँ
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