Monday 26 June 2017

कृष्ण को मुंह मोड़ना है

ज़िन्दगी जीना है, तुमको छोड़ना है
एक तिनके से हिमालय तोड़ना है

बंद दरवाजे निकल सकता नहीं हूँ
मैं तुम्हारे साथ चल सकता नहीं हूं
पर टँके जो चित्र मन दीवार पर हैं
मैं उन्हें भी तो बदल सकता नहीं हूं

बस दीवारों से मुझे सर फोड़ना है

मुश्किलों के सामने झुकना नहीं है
अब किसी के भी लिये रुकना नहीं है
टिमटिमाता मैं दिया हूँ तेल कम है
दिन निकलने  तक मुझे बुझना नहीं है

गर्म मरुथल और मुझको दौड़ना है

हैं प्रतीक्षा में अभी वीरान पनघट
और मधुवन में अभी है शेष आहट
फिर अभी राधा खनक करके हँसेगी
प्रेम सावन में भरेंगें रीते मन-घट

कर्मयोगी कृष्ण को मुँह मोड़ना है

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