Tuesday 20 June 2017

ओस की बूँद सा दिल

            ओस की बूँद-सा दिल
           चमकता प्यार झिलमिल
बहुत है सर्द मौसम
हवाएँ कुछ अलग हैं
चाँद की ओर हमको
बढ़ाने और पग हैं

प्यार में साधना को
करेंगे और शामिल

कोई देहरी पे आया
दीप-सा जल उठा मन
उजाला चाहिये तो
ज़रूरी है समर्पण

नेह की रोशनी हो
मिटेगी रात बोझिल

पड़ा नवपल्लवों पर
कुहासा बूँद बनकर
बहुत उम्मीद बाकी
अभी इन्कार मत कर

हाथ मे हाथ हो तो
हार जायेगी मुश्किल
     :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

No comments:

Post a Comment