Thursday 8 September 2016

दीवाने कि याद

ये हवा क्यों साथ लायी एक दीवाने कि याद
दो उँगलियों से उलझती ज़ुल्फ़ सुलझाने की याद

आँख के नीचे ये कालापन नहीं कुछ और है,
रेत के दिल में दबी सैलाब के आने कि याद

एक बादल दे गया जो अश्क़ वाली बारिशें दर्द बन अब तक हरी है एक बेगाने कि याद

ऐ ख़ुदा बदकिस्मती का दौर दे कर है कहाँ
कब करेगा खुशनुमा हालात दोहराने कि याद

बाग़ में कलियाँ खिलीं हैं और खिल कर गुल हुईं
आ गयी माशूक़ की खुलकर के हँस जाने कि याद
          :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
            फतेहपुर उ.प्र.
            08896865866

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