Sunday 11 September 2016

सूरज क़िस्मत का अब बुझने वाला लगता है

सूरज क़िस्मत का अब बुझने वाला लगता है।
उससे लम्बा मुझको उसका साया लगता है।
राहु रिजर्वेशन का उसको ढक कर बैठ गया
पूरा चंदा भी दुनिया को आधा लगता है
वोटों की खेती में पैसा पैदा होता है,
फसलों की खेती घाटे का धंधा लगता है।
हंस समझकर तुमने जिसको कुर्सी दे डाली,
वेश बदलकर बैठा मुझको कौआ लगता है।
अब किस राह 'प्रसून' बताओ हो पैसे वाला
पैसा पाने को भी कितना पैसा लगता है!
                      : प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
                         फतेहपुर उ.प्र.
                           08896865866

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