राणा के भाले ने रच दी ऐसी गौरव गाथा।
धन्य हो गई वीर प्रसूता जननी भारत माता।
पिता उदय सिंह महाराज माता जयवंता बाई,
शिशु प्रताप को स्वाभिमान की घुट्टी गयी पिलाई,
सर कट जाये चाहे लेकिन झुके न अपना माथा।
आतताइयों को उनकी ही भाषा में समझाया,
शेरों ने गीदड़ सेना को जमकर धूल चँटाया,
राणा ने हल्दीघाटी में वो इतिहास रचा था।
गढ़चित्तौड़ खड़ा है अब तक देखो सीना ताने,
सुना रहा है नव पीढ़ी को किस्से वही पुराने,
जिस पौरुष ने अपनी माटी का अभिमान रखा था।
चेतक ने भी राजपुताना पौरुष बल दिखलाया,
स्वामिभक्ति में सबसे ऊपर अपना नाम लिखाया,
युद्धकुशलता और बुद्धि में वह मालिक जैसा था।
समय माँगता है अब फिर से राणा वाला पौरुष,
आतंकी का चोला पहने दुश्मन आया फिर घुस,
दिखला दो राणा प्रताप ने कैसा युद्ध लड़ा था।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
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