Friday 18 March 2016

रजाई की


रात से ख़ूब आशनाई की।
बात की आपकी जुदाई  की।

और मजबूरियाँ रहीं होंगी,
बात मुमकिन न बेवफ़ाई की।

खूबियाँ कोहिनूर वाली हैं।
बस ज़रूरत जरा घिसाई की।

प्यार तू किस तरह निभायेगा,
फ़िक्र करता है जगहँसाई की।

ओढ़ जो सो गया थकन अपनी,
क्या ज़रूरत उसे रजाई की।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र

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