हमको छत पे बुलाना ग़ज़ब हो गया।
चाँद मुखड़ा दिखाना ग़ज़ब हो गया।
लोग समझे मिरा दिल ख़ुशी का महल,
दर्द का आशियाना ग़ज़ब हो गया।
आप हो ख़ूबसूरत पता था मुझे,
बात भी शायराना ग़ज़ब हो गया।
डाँट कर फिर पिता का मनाना मुझे,
पेट में गुदगुदाना ग़ज़ब हो गया।
हाथ जो थे कभी गाल को सेंकते,
पीठ का थपथपाना ग़ज़ब हो गया।
होठ पर रख मिरे इश्क़ को सो गए,
नींद में मुस्कुराना ग़ज़ब हो गया।
रात गुड़िया मेरी ज़िद दिखाने लगी,
तौलिये पे झुलाना ग़ज़ब हो गया।
–प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
8896865866
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