मुझे आपका दीद प्यारा बहुत है।
सनम यक झलक यक नज़ारा बहुत है।
वहाँ चाँद भी जल गया है जलन से,
सनम को ख़ुदा ने सँवारा बहुत है।
नहीं शेर केवल ज़ुबाँ से कहा है,
उसे ज़िन्दगी में उतारा बहुत है।
बहा कर नदी एक बनकर भले तू,
मुझे उस नदी का किनारा बहुत है।
उसे एक अहसास का दो सहारा,
सुनो दिल 'मेरा बेसहारा बहुत है।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
8896865866
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