फलक खामोश है जो ख़्वाब सा टूटा सितारा है।
ज़मीं खुश है मुरादें माँगने का ये इशारा है।
यहाँ बारिश किसी का घर बहाकर ले गई देखो,
वहाँ वो कह रहे देखो बड़ा उम्दा नज़ारा है।
नदी में इश्क़ की गोते लगाकर भी नहीं समझे,
कभी मझधार लगता है कभी लगता किनारा है।
हमें मज़दूर कहते है यही किस्मत हमारी है,
तुम्हें बंगला मुबारक हो हमारा ईंट-गारा है।
कभी मैं माँगता था रौशनी बेटी मुझे दे दी,
ख़ुदा ने आज मेरे वास्ते चंदा उतारा है।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
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