लौट कर फिर से जवानी आएगी।
ख़्वाब में जब रातरानी आएगी।
फूल मुस्कानें लगेंगे बाग में,
आप से पहले निशानी आएगी।
ख़त्म झगडे हो न पाएँगे कभी,
बात जो तुमको बढ़ानी आएगी।
क्यों भला औलाद को हूँ टोकता,
कब मुझे इज़्ज़त बचानी आएगी।
मैं सिखाता था सलीके शान से,
क्या पता था बदजुबानी आएगी।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
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