Tuesday 24 November 2015

आग लगाने में व्यस्त हैं


कुछ लोग भले दर्द बँटाने में व्यस्त हैं।
कुछ और लोग आग लगाने में व्यस्त हैं।
ख़ुद के लिए जो ख़ास कुछ भी कर नहीं सके,
वो दूसरों का भाग्य बताने में व्यस्त हैं।
झगड़े फ़साद सीढ़ियाँ हैं राजनीति की,
हम तो अभी दुकान सजाने में व्यस्त हैं।
फ़ुरसत मिले तो हम भी करें देश के लिए,
है मुफ़लिसी का' दौर कमाने में व्यस्त हैं।
सब लोग मस्त हो गए रंगीन फिज़ा में,
बस एक हमीं बोझ उठाने में व्यस्त हैं।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

No comments:

Post a Comment