Saturday 21 November 2015

बदलने लगा है शहर इसलिए

मैं तड़पता रहा उम्र भर इसलिए।
तेरी यादों का ग़म था ज़हर इसलिए।
यक शरारा फ़क़त और तिनके कई,
बस्तियाँ जल उठीं इस तरह  इसलिए।
ख़ुद के घर का पता उसको ख़ुद ही न था,
वो भटकता रहा दर-ब-दर इसलिए।
वो परिंदा मिरे रू-ब-रू आ गया,
है अभी तक तुम्हारा असर इसलिए।
बात छोटी समझ बेख़बर ही रहे,
अब बदलने लगा है शहर इसलिए।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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