Friday 6 November 2015

कोई हँसाता ही नहीं

रूठ कर बैठा रहूँ कोई मनाता ही नहीं।
माँ मुझे तेरे सिवा कोई हँसाता ही नहीं।
मैं बुलंदी पर मिरे हर ओर मीठे लोग हैं,
आइना भी आज मुझको सच बताता ही नहीं।
क्या बढ़ाये बॉस बेमतलब हमारी सैलरी,
पास डिग्री टॉप की पर हुनर आता ही नहीं।
ग़र मुझे मालूम होता यूँ उड़ाओगे इसे,
सच कहूँ बेटा कभी पैसे जुटाता ही नहीं।
इस जुदाई ने हमें कुछ इस तरह पागल किया,
कब मिले बिछड़े हमें कुछ याद आता ही नहीं।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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