Saturday 19 October 2013

ग़ज़ल

महलों का करेंगे क्या हमें कोने की आदत है।
हमें सोना नहीं देना हमें सोने की आदत है।
बड़ी मुश्किल से ढूँढा था,मगर फिर लापता है वो
उसे क्या खोजना है जी,जिसे खोने की आदत है।
सताता है ये खालीपन,सालती है ये बेफ़िक्री,
ये कंधे लग रहे हल्के, हमें ढोने की आदत है।
 खज़ाना पाके क्या वो लोग हँसना सीख जायेंगे,
जिन्हें औरों के आगे बेवज़ह रोने की आदत है।
             -कॉपीराइट @प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,फतेहपुर

3 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (24-10-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 155" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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  2. सुंदर गजल....




    कुलदीप ठाकुर... के ब्लौग का अनुसरण भी करें...

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  3. बहुत बहुत आभार सभी का यहाँ पधारने के लिए

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