Sunday 1 November 2015

मेरी ग़ज़लें

1.
तरक़्क़ी का मुझे ये रास्ता तैयार लगता है।
सियासत फ़ायदे वाला मुझे व्यापार लगता है।
धरम के नाम पर बेख़ौफ़ क़त्ले आम जारी है,
नफ़रत का यक़ीनन गर्म अब बाज़ार लगता है। 
नज़र में छा गया वो शख़्स कुछ ऐसा कि मत पूँछो,
उसके सामने हर अक़्स अब बेकार लगता है।
जुनूँ मेरा है उसके वास्ते ये क्या बताऊँ मैं,
पहली बार जैसा वो मुझे हर बार लगता है।
मुझे अच्छे नहीं लगते सितारे आसमा के अब,
ज़ेहन अच्छा नहीं होता तो गुल भी ख़ार लगता है
2.
मुहब्बत में यकीनन वक़्त तो बेकार होता है।
मगर इक खूबसूरत सिलसिला तैयार होता है।
न समझो आग तूफानों में ठंडी हो गई बुझकर
इश्क़ की राख में भी तो छुपा अंगार होता है।
चमक आँखों में आ जाती है जाने क्यूँ न जानूँ मैं
जब भी कभी उस शख्स का दीदार होता है।
मुहब्बत को निभा लेना नहीं आसान है यारों
गुलिस्ताँ की सुरक्षा में कँटीला तार होता है
संभालो इस अमानत को बहुत ही कीमती है ये
ज़िन्दगी के सफ़र में इश्क़ बस इक बार होता है।

3.
किसी के ग़म तले आँसू बहाना भूल जाता हूँ।
बड़ा खुदगर्ज़ हूँ' गुज़रा ज़माना भूल जाता हूँ।
न रखना दिल में' तू मेरी वफ़ा पर शक़ नहीं करना
भुलक्कड़ हूँ ज़रा वादा निभाना भूल जाता हूँ
चमक में भूल कर ख़ुद को उलझ जग के भुलावे में
सफ़र में हूँ, किधर अपना ठिकाना भूल जाता हूँ
दिखाई रौशनी जिसने अँधेरे दौर में मुझको
उसी के सामने दीपक जलाना भूल जाता हूँ
ज़ुदा मुझको न करना भूलकर मेरी ये' आदत है
चला जाऊँ अगर तो लौट आना भूल जाता हूँ।

4.
 फ़िज़ा के रंग से वो शख़्स तो अन्जान लगता है।
भले ज़िन्दा मगर मुझको बहुत बेज़ान लगता है।
बहुत पैसा बहुत रुतबा बहुत असबाब रखता है
न रोना बंद फिर भी,  ग़म भरी दूकान लगता है।
ज़माने ने खरी-खोटी उसे जीभर सुनाई है
अभी भी कह रहा है इश्क़ तो आसान लगता है।
सफेदी है फ़क़त तन में, मगर मन स्याह ही इनका
ख़ुदा जिसको समझते हो मुझे शैतान लगता है।
शहर के फ्लैट में सब है मगर मन ऊब जाता है
बहुत अच्छा मुझे वो गाँव का दालान लगता है।

5.
 कभी गुज़रे हुए दुःख दर्द को तुम याद मत करना।
ख़ुशी के वक़्त को भी बेवज़ह बर्बाद मत करना।
मुसलमां और हिन्दू को लड़ाने की वज़ह हैं ये
मियां ये नागफनियाँ हैं इन्हें आबाद मत करना।
बड़े मीठे बड़े खट्टे मिलन के पल सनम देखो
विरह का ज़िक्र करके तुम इन्हें बेस्वाद मत करना।
सुकूँ मुझको बहुत है प्यार की इस क़ैद में जानम
मुझे दिल के झरोखे से कभी आज़ाद मत करना।
बुढ़ापे के लिए बस एक ही उम्मीद होती है
किसी को ऐ ख़ुदाई पाक बेऔलाद मत करना

 6.
अगर हमको तुमसे मुहब्बत न होती
कभी तुमसे कोई शिकायत न होती
कहानी न बढ़ती हमारी तुम्हारी
अगर आँख से वो शरारत न होती
अगर ख़ून में दूध माँ का न होता
हमारे वतन की हिफाज़त न होती
शहर में यक़ीनन बड़ा नाम होता
अगर मुझमें इतनी शराफ़त न होती
ये मुश्किल भरे दिन न कटते हमारे
अगर दोस्ती की अमानत न होती
गुलिस्ताँ हमारा महकता ही रहता
अगर इतनी गंदी सियासत न होती
अगर प्यार बेटों के दरम्यान होता
चिता में पिता की ज़लालत न होती

                                            copyright@    -प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून


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