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प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून' का साहित्य को समर्पित ब्लॉग
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Tuesday 21 February 2017
दोहे
जड़ को भी भाया नहीं, छल,पाखण्ड, प्रपंच।
ठगबंधन के बोझ से टूटा देखो मंच।।
: प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
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