Wednesday 14 September 2016

मुक्तक

चोट से काँच का सामान  बिखर जाता है
वक़्त मुँह मोड़ ले अरमान बिख़र जाता है
और तूफ़ान में गिरकर के सँभल भी जाये
इश्क़ में  हार के  इन्सान  बिखर जाता है
                               : प्रवीण 'प्रसून'

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