आ गए तुम ज़मी पर हमारे लिए।
आसमां रह गया चाँद तारे लिए।
तैर मझधार में मंज़िलें ढूंढ ले ,
मिल सकेगा नहीं कुछ किनारे लिए।
हम उसे भूल जाते ये तय था मगर,
मिल गया इश्क़िया फिर इशारे लिया।
तुम गए तो न दिल से ये पतझड़ गया,
राह कितनी मिलीं तो बहारे लिए।
मोतियाँ ले गया है कोई लूट के,
सीप फिर रह गई अश्क़ खारे लिए।
प्रवीण 'प्रसून'
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