Wednesday 25 May 2016

गुज़रा नहीं रहता

ये मुमकिन ही नहीं नायाब इक रुतबा नहीं रहता।
अगर मैं मुश्किलों में इस क़दर उलझा नहीं रहता।

बचा के रख लिये हैं गाँठ में मैंने ज़रा पैसे,
सुना है ये नहीं रहता तो फिर रिश्ता नहीं रहता।

सफ़र में हर क़दम पर आँख अपनी खोल के रखिये,
गुनाहों का हमेशा एक-सा चेहरा नहीं रहता।

अगर अपना हुनर सूरज सितारों को बता देता,
उजाला बाँटने को तब वही तन्हा नहीं रहता।

उसे गुल का महकना भी नहीं महसूस होता है,
कँटीले रास्तों से जो कभी गुज़रा नहीं रहता।
   -प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
   फतेहपुर उ.प्र.
   08896865866

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