Sunday 15 May 2016

इश्तेहार लाया हूँ


नफरतों का ग़ुबार लाया हूँ।
मैं ज़ुबाँ में कटार लाया हूँ।

नाम हो जाय अदब में मेरा,
एक चेहरा उधार लाया हूँ।

पंख रंगीन और मिल जाएं,
एक सियासी बयार लाया हूँ।

अम्न वाली ज़मीं में बो देना,
भर के मुट्ठी में ख़ार लाया हूँ।

धर्म वाली दुकान में टाँगो,
मुफ़्त के इश्तेहार लाया हूँ।

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