Saturday 26 December 2015

ग़ज़ल जान गया हूँ

हर इक के रू-ब-रू बिना ईमान गया हूँ।
ऐ वक्त तेरी नब्ज़ को पहचान गया हूँ,

है आख़िरी नहीं ये मुलाक़ात रख सनद,
तेरे लबों पे छोड़ के मुस्कान गया हूँ।

हर शाम दिल अज़ीज़ बेटियों के सामने,
ले करके मुट्ठियों में आसमान गया हूँ।

होने लगी जो गुफ़्तगू नज़रों के दरमियां,
लगने लगा मुझे कि ग़ज़ल जान गया हूँ।

जब भी ग़ुरूर का नशा सर पे चढ़ा मिरे,
महफ़िल वहीं पे छोड़ के शमशान गया हूँ।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
08896865866

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