Monday 23 January 2012

मुँह चिढाता चाँद

घड़ी की टिक्क
मुझे याद दिलाती है 
जिम्मेदारियों का बोझ धोने की 
और/ हर कदम पर ठोकर
याद दिला जाती है 
हथेलियों में भाग्य रेखा नहीं होने की/बेशक
दृढ़ निश्चय और कर्म से/भाग्य
एक न एक दिन निखर जायेगा
लेकिन मेरा परिवार-मेरा सपना 
निश्चित ही
तब तक बिखर जायेगा
उस दिन व्यर्थ हो जाएँगी
सारी डिग्रियाँ
और निराश हो जाएँगी
मेरी और तकती निगाहें
टुकड़े-टुकड़े जोड़ा गया
उम्मीदों का महल  ढल जायेगा
बस बेरोज़गारी का प्रमाणपत्र 
हाथ रह जायेगा
मन क्रांत है/बेहद अशांत है
उगता सूरज तो अब भी हर रोज़
आशा की एक किरण ले आता है
लेकिन रात
फिर वही ढाक के तीन पात
ये मुँह  चिढाता चाँद
खिल्ली उड़ाते तारे अच्छे नहीं लगते

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