Tuesday 5 December 2017

आँसू

रात  तन्हा   है  मेरी  और   सहारे  आँसू
ख़त्म  उम्मीद  नहीं  और  न  हारे  आँसू

दर्द की शब में सबब पूछ उजाले का क्या
चंद  उम्मीद   लिये   चाँद  सितारे  आँसू

सूख कर गाल में एक नक्श बना डाला है
हू-ब -हू  दिल  की  दास्तान  उभारे  आँसू

संग  शहनाइयों  के   चूर   ख़्वाब  हो  बैठे
टूट कर गिर गये  आंखों  से  कुँआरे  आँसू

सूख कर रह  गयीं  आँखें  इधर  जुदाई  में
शख़्स यक ले गया है साथ  में  सारे  आँसू
                       
                             प्रवीण 'प्रसून'

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