Tuesday 22 August 2017

आज़माते रहे हैं

इधर मुझको अपना बताते रहे हैं
उधर उम्र भर आज़माते रहे हैं

किसे ख़्वाब ये मखमली से लगे हैं
हमें ख़्वाब अब तक डराते रहे हैं

जिन्हें दोस्तों का दिया नाम हमने
वो ताज़िन्दगी काम आते रहे हैं

सुकूँ पा रही हैं जिन्हें देख नज़रें
वही मेरे दिल को सताते रहे हैं

अदावत निभाते रहे चुपके चुपके
मगर दावतों में बुलाते रहे हैं

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