इधर मुझको अपना बताते रहे हैं
उधर उम्र भर आज़माते रहे हैं
किसे ख़्वाब ये मखमली से लगे हैं
हमें ख़्वाब अब तक डराते रहे हैं
जिन्हें दोस्तों का दिया नाम हमने
वो ताज़िन्दगी काम आते रहे हैं
सुकूँ पा रही हैं जिन्हें देख नज़रें
वही मेरे दिल को सताते रहे हैं
अदावत निभाते रहे चुपके चुपके
मगर दावतों में बुलाते रहे हैं
No comments:
Post a Comment